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"मैं क्यों हूँ? | ज़िंदगी के अनसुलझे सवाल"🥀

रात के अंधेरे में छत पर लेटकर सोच रहा था में ओर खुद से सवाल कर रहा था। मेरी आंखों में नींद नहीं थी, सिर्फ़ सवाल थे। सवाल, जो हर दिन मुझे अंदर ही अंदर खा रहे थे।


"मैं क्यों हूँ...?


क्या मेरी ज़िंदगी का कोई मक़सद है? या मैं बस इस दुनिया में एक और नाम बनकर रह गया हूँ? बचपन में सोचा था कि बड़ा होकर कुछ बड़ा करूंगा, मगर अब तो दिन काटना ही ज़िंदगी बन गया है।

"कभी-कभी इंसान अपने होने का जवाब खुद से मांगता है, लेकिन उसे सिर्फ़ ख़ामोशी मिलती है..."


"किसके लिए कर रहा हूँ...?


घरवालों के लिए? जो मेरी परेशानियों को समझ नहीं सकते। दोस्तों के लिए? जो सिर्फ़ हंसने और मज़ाक करने तक ही सीमित हैं। या उस इंसान के लिए जो मेरे दर्द को महसूस ही नहीं कर सकता?

"जिसके लिए तुम तकलीफें सहते हो, अगर उसे तुम्हारी तकलीफों का एहसास नहीं, तो वो तुम्हारी ज़िंदगी में क्यों है?"


"क्यों कर रहा हूँ...?


हर दिन एक नई जंग लड़ता हूँ, लेकिन किसलिए? खुद को साबित करने के लिए? या इस दुनिया में अपनी जगह बनाए रखने के लिए? पर जिस दुनिया को मेरे दर्द से कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता, उसके लिए इतनी कोशिश क्यों?

"ज़िंदगी जब बोझ लगने लगे, तो समझ लो कि तुम दूसरों के हिसाब से जी रहे हो..."


"कब तक करना है...?


जब तक टूट नहीं जाता? जब तक थक कर गिर नहीं जाता? या जब तक इस दर्द का कोई अंत नहीं मिल जाता? क्या वाकई इस सबका कोई अंत है? या बस यूँ ही चलते रहना है, जब तक सांसें खुद जवाब ना दे दें?

"हर किसी के पास लड़ने की ताकत होती है, मगर कब तक? ये किसी को नहीं पता..."


"क्या करना है...?


जो करना चाहता था, वो कभी हो नहीं पाया। जो कर रहा हूँ, वो मर्ज़ी से नहीं कर रहा। और जो करना चाहिए, उसका रास्ता नहीं दिखता।

"कुछ लोग अपने सपनों को खुद जला देते हैं, सिर्फ़ इसलिए कि दूसरों की उम्मीदों को रौशनी दे सकें..."


"और कब इसका अंत होगा...?


शायद जब थक जाऊँगा। शायद जब महसूस होगा कि अब कोई फ़र्क नहीं पड़ता। या फिर जब ये एहसास होगा कि मेरे होने या ना होने से दुनिया को कोई फ़र्क नहीं पड़ता।

"जो दुनिया तुम्हारे जीते जी तुम्हें नहीं समझी, वो मरने के बाद भी बस दो दिन तुम्हारी यादों का बोझ उठाएगी, और फिर ज़िंदगी पहले जैसी चलती रहेगी..."


तो क्या करना चाहिए?


शायद, यही समझना कि इस दुनिया में किसी को तुम्हारी उतनी परवाह नहीं जितनी तुम सोचते हो। इसलिए खुद के लिए जीना सीखो। खुद के लिए वो करो जो तुम्हें खुश करे। क्योंकि आख़िर में, तुम्हारे दर्द को सिर्फ़ तुम ही समझोगे, कोई और नहीं।

"अपनी ज़िंदगी को किसी के लिए मत जियो, क्योंकि अंत में दुनिया तुम्हें बस यादों में कुछ दिन रखेगी और फिर भूल जाएगी..."


Unknown ✍️

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